Thursday, April 27, 2006

तनहाई....

बैठा हूं अपने साथी के संग, रोज की तरह मैं,
कोई नहीं, मेरी तनहाई और मैं हूं |

बैठा हूं अपने साथी के संग, रोज्ञ की तरह मैं,
कोई और नहीं, मेरी तनहाई और मैं हूं ||

होती है यारों की महफिल, खूब शोर-ओ-गुल हर शाम,
नहीं करता आंखें नम, ना हो जाए वो बदनाम ||

तसव्वुर नाकाम होता है हर शाम को,
अगली शब के लिए मनाता हूं अपने आप को ||

शुक्र है मेरे पास ये धुंए का गुबार है,
गर्क कर देता हूं इसमें, अपनी सारी हसरतों को मैं ||

लेकिन ज्ञिन्दगी का एक पहलू ये भी तो है,
नई बहार के लिए, पुराने गुलों को जाना है |

वक्त को खुदा ने बनाया ही ऐसा, उसे तो बदलना ही है,
बस इनसान को साथ बदलने की कुव्वत देना भूल जाता है ||

Tuesday, April 25, 2006

Kab Tak............

वैसे मुझे कुछ शिकायत नहीं तुमसे,
करीब इतना नहीं कि कह सकूं हक से,
लेकिन एक सवाल है जहन मैं, ये इन्तजार कब तक................

इत्तिफाकन मिले तुम, धीरे धीरे जहन में उतरे,
खफा कभी, जुदा कभी, कभी आए पास मेरे,
कब होगे मुकम्मल, अधूरेपन की ये टीस कब तक.........

गर नहीं है कुछ, तो ये एहसास क्या है....
हर दूसरी सांस में तुम्हारी आहट, करीब होने का गुमान क्यूं है,
वजूद मेरा नकारना अपनी जिन्दगी में कब तक............

yaad hai aaj bhi, aya tha yahan khaali hath main,
fir meri subahon aur shaamon ko mila tumhara saath naya,
kahan gaya wo ikhlaaq, ye waqt thehraa rahega kab tak................

jaisa aksar hota hai, waqt ki gard mein kho jayegi meri sadaa,
reh jaunga beeta lamhaa bankar, yaadon mein tumhari,
koi hastee nahin hogi meri, kewal guzraa waqt hunga tumhare liye,
dil mein iss ehsaas ki faans, chubhtee rahegi kab tak..................

Ye intezaar kab tak..........