मुद्दत हुई...(Mirza Ghalib)
मुद्दत हुई है यार को महमां किए हुए ।
जोश-ए-कदां से बज़्म चरागां किए हुए ।।
इक नाबहार-ए-नाज़ को ताके है फिर निगाह ।
चेहरा फ़रोग़-ए-मय से गुलिस्तां किए हुए ।।
जी ढूंढता है फिर वही फुरसत के रात दिन ।
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानां किए हुए ।।
गा़लिब हमें न छेड के फिर जोश-ए-अश्क़ से ।
बैठे हैं हम तहय्यर-ए-तूफां किए हुए ।।
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