Thursday, January 26, 2006

मुद्दत हुई...(Mirza Ghalib)

मुद्दत हुई है यार को महमां किए हुए ।
जोश-ए-कदां से बज़्म चरागां किए हुए ।।

इक नाबहार-ए-नाज़ को ताके है फिर निगाह ।
चेहरा फ़रोग़-ए-मय से गुलिस्तां किए हुए ।।

जी ढूंढता है फिर वही फुरसत के रात दिन ।
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानां किए हुए ।।

गा़लिब हमें न छेड के फिर जोश-ए-अश्क़ से ।
बैठे हैं हम तहय्यर-ए-तूफां किए हुए ।।

0 Comments:

Post a Comment

<< Home